रविवार, अक्तूबर 10, 2010

कहत कबीर सुनो भई साधो बात कहूं मैं खरी... फेसबुक पे आय रही नित जन्‍नत की परी - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

कहत कबीर सुनो भई साधो बात कहूं मैं खरी... फेसबुक पे आय रही नित जन्‍नत की परी

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

प्रधान संपादक ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह

फेसबुक महिमा आज लिखूं , देखी लीला अपरम्‍पार ।

जिस पर नित  हो रही , फेक फर्जीयन की भरमार ।।

पूरा ज्ञान बटोर कर लिया बहुत अनुभव और विज्ञान ।

आज कबीरा बॉंट रहा, फेसबुक के अनुभव हुये महान ।।   

कहते सोशल नेटवर्क अहो, बहुत ये फेसबुक है मशहूर ।

गुण्‍डा लफंगा छाय रहे, अनसोशल है भई भलेन सों दूर ।।

सारे मदारी और कबाड़ी नित दस लीला रच कर खेल दिखाते ।

एक आदमी चला रहा अकाउण्‍ट चालीसा फर्जी नाम ये धरते ।।

हर शख्‍स अच्‍छा नहीं,भला नही हर इंसान, फेसबुक ये समझाता।

चेहरे को मत देखिये, चेहरे पर हैं रंग बहुत, यह सारे दिखलाता ।।

फेसबुक पर आय के, यारो खूब समझ सोच के मित्र बनाओ ।

कहीं मित्र के वेष में आतंकी हो न मित्र न धोखा ऐसा खाओ ।।

अलकाइदा से फलकाइदा तक, नक्‍सलीयों से फक्‍सलीयों तक, नित ही सबका यहॉं बसेरा है ।

काल गर्ल से, बॉल गर्ल तक, वेट गर्ल से कैट गर्ल तक, फेट गर्ल से चैट गर्ल का डेरा है ।।

यहॉं खुले में खेलता, दाउद और इब्राहीम ।

यहॉं सुपाड़ी भी चले देते जो राम रहीम ।।

भोग विलास पाखण्‍ड सजा, है नित नई दूकानें रोज लगें ।

एक ही लड़की चला रही सौ नाम चित्र के अकाउण्‍ट बने ।।

हर घण्‍टे पर अकाउण्‍ट बदल कर वह नये खाते से लॉग करे ।

नये अकाउण्‍ट और नये रूप में, हर घण्‍टे वो ग्राहक रोज धरे ।।

रहे बगल यहीं पास आस में, बोले विदेश में रहती हूं ।

फोन नंबर मेरा विदेशी, आई एस.डी.पर कालें करती हूं ।।

कहीं नेता, कहीं पत्रकार, कहीं धर्मगुरू, कहीं व्‍यापारी ।

कभी भोले छात्र फंसाना, कहीं शिकार कोई कलाकार ।

कहीं अभिनेता, या नेता, जो भी दिल से हो लाचार ।

कभी साहित्‍यकार, चाहे कोई या फिर हो बेरोजगार ।

बड़ी विचित्र ब्‍लैकमेल और मौज मजे की दुनियादारी ।।

धर्म अधर्म के नाम पर नित ही यहॉं रोज फसाद रचा करते ।

कोई धर्म की जय पुकार रहा, कुछ धर्म यहॉं गारियाया करते ।।

कुलघाती कुल हीन यहॉं, वर्णसंकरों का मेला रोज सजा ।

जिनके उर में ज्ञान नहीं पाप सिर पर चढ़ कर बोल रहा ।।

हर नाम के पीछे राज छिपे हैं, राजों से फेसबुक पटी हुयी ।

खुद नंगी, सबको नंगा करती, लूटे वो जो पहले लुटी हुयी ।।

हर शख्‍स यहॉं जो नामी है, छोरी रचती उसकीं बदनामी हैं ।

खुद की इज्‍जत पता नहीं, पर लेती इज्‍जत जो भी नामी है ।।

यहॉं रंग रूप के सौदागर नया नित नूतन जाल बिछाते हैं ।

भोली कन्‍याओं को बहला अपने दल का सदस्‍य बनाते हैं ।।

यहॉं नाम सारंगी जिसका, वह नारंगी बन कर  लीला दिखा रही ।

अब यहॉं भड़ुओ की मण्‍डी, खोज ग्राहक दे दे आमंत्रण बुला रही ।।

खाली पीला लूट पीट कर, खाली ठेंगा उसे थमाते ।

दे अखबारों में विज्ञापन फोन नंबर भी उसे थमाते ।। 

 

अगले अंक में जारी....