शुक्रवार, मार्च 19, 2010

उपभोक्‍ता अधिकार एवं शिकायत प्रणाली – डॉ. शीतल कपूर डॉ.शीतल कपूर

उपभोक्‍ता अधिकार एवं शिकायत प्रणाली

डॉ.शीतल कपूर

(डा कपूर उपभोक्ता क्लब की संयोजक हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कालेंज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

वैश्वीकरण एवं भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने के कारण आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम हो गयी है। हर उद्योग में, चाहे वह त्वरित इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) हो या अधिक दिनों तक चलने वाले सामान हों या फिर सेवा क्षेत्र हो, उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 20 से अधिक ब्रांड हैं। पर्याप्त उपलब्धता की यह स्थिति उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उपभोक्ता को उसकी धनराशि की कीमत मिल रही है? आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण क्यों जरूरी हो गया है? क्या खरीददार को जागरूक बनाएं की अवधारणा अब भी कायम है या फिर हम उपभोक्ता संप्रुभता की ओर आगे बढ रहे हैं।

उपभोक्ता कल्याण की महत्ता

 उपभोक्तावाद, बाजार में उपभोक्ता का महत्व और उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता भारत में उपभोक्ता मामले के विकास में कुछ मील के पत्थर हैं। दरअसल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसके बाजार के चारों ओर घूमती है। जब यह विक्रेता का बाजार होता है तो उपभोक्ताओं का अधिकतम शोषण होता है। जब तक क्रेता और विक्रेता बड़ी संख्या में होते हैं तब उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प होते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनने से पहले तक भारत में विक्रेता बाजार था। इस प्रकार वर्ष 1986 एक ऐतिहासिक वर्ष था क्योंकि उसके बाद से उपभोक्ता संरक्षण भारत में गति पकड़ने लगा था।

 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद पाने का अवसर प्रदान किया। उसके पहले सरकार ने हमारे अपने उद्योग जगत को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा पर रोक लगा दी थी। इससे ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां उपभोक्ता को बहुत कम विकल्प मिल रहे थे और गुणवत्ता की दृष्टि से भी हमारे उत्पाद बहुत ही घटिया थे। एक कार खरीदने के लिए बहुत पहले बुकिंग करनी पड़ती थी और केवल दो ब्रांड उपलब्ध थे। किसी को भी उपभोक्ता के हितों की परवाह नहीं थी और हमारे उद्योग को संरक्षण देने का ही रुख था।

 इस प्रकार इस कानून के जरिए उपभोक्ता संतुष्टि और उपभोक्ता संरक्षण को मान्यता मिली। उपभोक्ता को सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का अपरिहार्य हिस्सा समझा जाने लगा, जहां दो पक्षों यानि क्रेता और विक्रेता के बीच विनिमय का तीसरे पक्ष यानी कि समाज पर असर होता है। हालांकि बड़े पैमाने पर होने वाले उत्पादन एवं बिक्री में लाभ की स्वभाविक मंशा कई विनिर्माताओं एवं डीलरों को उपभोक्ताओं का शोषण करने का अवसर भी प्रदान करती है। खराब सामान, सेवाओं में कमी, जाली और नकली ब्रांड, गुमराह करने वाले विज्ञापन जैसी बातें आम हो गयीं हैं और भोले-भाले उपभोक्ता अक्सर इनके शिकार बन जाते हैं।

संक्षिप्त इतिहास

 9 अप्रैल, 1985 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए कुछ दिशानिर्देशों को अपनाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को सदस्य देशों खासकर विकासशील देशों को उपभोक्ताओं के हितों के बेहतर संरक्षण के लिए नीतिंयां और कानून अपनाने के लिए राजी करने का जिम्मा सौंपा था। उपभोक्ता आज अपने पैसे की कीमत चाहता है। वह चाहता है कि उत्पाद या सेवा ऐसी हो जो तर्कसंगत उम्मीदों पर खरी उतरे और इस्तेमाल में सुरक्षित हो। वह संबंधित उत्पाद की खासियत को भी जानना चाहता है। इन आकांक्षाओं को उपभोक्ता अधिकार का नाम दिया गया। 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।

 इस तारीख का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह वही दिन है जब 1962 में अमेरिकी संसद कांग्रेस में उपभोक्ता अधिकार विधेयक पेश किया गया था। अपने भाषण में राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था, न्नन्न यदि उपभोक्ता को घटिया सामान दिया जाता है, यदि कीमतें बहुत अधिक है, यदि दवाएं असुरक्षित और बेकार हैं, यदि उपभोक्ता सूचना के आधार पर चुनने में असमर्थ है तो उसका डालर बर्बाद चला जाता है, उसकी सेहत और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और राष्ट्रीय हित का भी नुकसान होता है।

 उपभोक्ता अंतर्राष्ट्रीय (सीआई), जो पहले अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता यूनियन संगठन (आईओसीयू) के नाम से जाना जाता था, ने अमेरिकी विधेयक में संलग्न उपभोक्ता अधिकार के घोषणापत्र के तत्वों को बढा क़र आठ कर दिया जो इस प्रकार है- 1.मूल जरूरत 2.सुरक्षा, 3. सूचना, 4. विकल्पपसंद 5. अभ्यावेदन 6. निवारण 7. उपभोक्ता शिक्षण और 8. अच्छा माहौल। सीआई एक बहुत बड़ा संगठन है और इससे 100 से अधिक देशों के 240 संगठन जुड़े हुए हैं।

 इस घोषणापत्र का सार्वभौमिक महत्व है क्योंकि यह गरीबों और सुविधाहीनों की आकांक्षाओं का प्रतीक है। इसके आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल, 1985 को उपभोक्ता संरक्षण के लिए अपना दिशानिर्देश संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986

 भारत ने इस प्रस्ताव के हस्ताक्षरकर्ता देश के तौर पर इसके दायित्व को पूरा करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनाया। संसद ने दिसंबर, 1986 को यह कानून बनाया जो 15 अप्रैल, 1987 से लागू हो गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना है। इसके तहत उपभोक्ता विवादों के निवारण के लिए उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना का प्रावधान है।

 यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अनुचित सौदों और शोषण के खिलाफ प्रभावी, जनोन्मुख और कुशल उपचार उपलब्ध कराता है। अधिनियम सभी सामानों और सेवाओं, चाहें वे निजी, सार्वजनिक या सहकारी क्षेत्र की हों, पर लागू होता है बशर्ते कि वह केंद्र सरकार द्वारा अधिकारिक गजट में विशेष अधिसूचना द्वारा मुक्त न कर दिया गया हो। अधिनियम उपभोक्ताओं के लिये पहले से मौजूदा कानूनों में एक सुधार है क्योंकि यह क्षतिपूर्ति प्रकृति का है, जबकि अन्य कानून मूलत: दंडाधारित है और उसे विशेष स्थितियों में राहत प्रदान करने लायक बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत उपचार की सुविधा पहले से लागू अन्य कानूनों के अतिरिक्त है और वह अन्य कानूनों का उल्लंघन नहीं करता। अधिनियम उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को कानूनी अमली जामा पहनाता है वे हैं- सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चुनाव का अधिकार, अपनी बात कहने का अधिकार, शिकायत निवारण का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार। अधिनियम में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सलाहकार एवं न्याय निकायों के गठन का प्रावधान भी है। इसके सलाहकार स्वरूप के तहत केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर उपभोक्ता सुरक्षा परिषद आते हैं। परिषदों का गठन निजी-सार्वजनिक साझेदारी के आधार पर किया जाता है। इन निकायों का उद्देश्य सरकार की उपभोक्ता संबंधी नीतियों की समीक्षा करना और उनमें सुधार के लिए उपाय सुझाना है।

 अधिनियम में तीन स्तरों जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जैसे अर्ध्दन्यायिक निकाय मशीनरी का भी प्रावधान है। फिलहाल देश में 621 जिला फोरम, 35 राज्य आयोग और एक राष्ट्रीय आयोग है। जिला फोरम उन मामलों में फैसले करता है जहां 20 लाख रूपए तक का दावा होता है। राज्य आयोग 20 लाख से ऊपर एक करोड़ रूपए तक के मामलों की सुनवाई करता है जबकि राष्ट्रीय आयोग एक करोड़ रूपए से अधिक की राशि के दावे वाले मामलों की सुनवाई करता है। ये निकाय अर्ध्द-न्यायिक होते हैं और प्राकृतिक न्याय के सिध्दांतों से संचालित होते हैं। उन्हें नोटिस के तीन महीनों के अंदर शिकायतों का निवारण करना होता है और इस अवधि के दौरान कोई जांच नहीं होती है जबकि यदि मामले की सुनवाई पांच महीने तक चलती है तो उसमें जांच भी की जाती है।

 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 समेकित एवं प्रभावी तरीके से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और संवर्ध्दन से संबंधित सामाजिक-आर्थिक कानून है। अधिनियम उपभोक्ताओं के लिए विक्रेताओं, विनिर्माताओं और व्यापारियों द्वारा शोषण जैसे खराब सामान, सेवाओं में कमी, अनुचित व्यापारिक परिपाटी आदि के खिलाफ एक हथियार है। अपनी स्थापना से लेकर 01 जनवरी, 2010 तक राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की उपभोक्ता अदालतों में 33,30,237 मामले दर्ज हुए और 29,58,875 मामले निपटाए गए।

 

(डा कपूर उपभोक्ता क्लब की संयोजक हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कालेंज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

 

 

 

प्राथमिक उद्योग संस्था फूफ निलंबित , खाद्यान्न एवं कैरोसिन नही बाटने पर हुई कार्यवाही

प्राथमिक उद्योग संस्था फूफ निलंबित , खाद्यान्न एवं कैरोसिन नही बाटने पर हुई कार्यवाही

भिण्ड 18 मार्च 2010

      अनुविभागीय राजस्व अधिकारी भिण्ड डीआर कुर्रे द्वारा प्राथमिक इन्दिरा गांधी उद्योग संस्था फूफ को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है। अधिकृत जानकारी में बताया गया है कि उक्त संस्था सेवा सहकारी सराया से अटैच की गई थी और संस्था द्वारा बीते 3 महीनों से खाद्यान्न एवं कैरोसिन का वितरण नही किया जा रहा था। साथ ही गंभीर किस्म की अनियमितताएें की जाती रही है जिससे उक्त कार्यवाही की जाकर उक्त दुकान को आगामी आदेश तक सेवा सहकारी संस्था बरही से संबर्द्व किया गया है।

 

आज विज्ञान एवं बायोटेक्नोलॉजी विषय के प्रश्न पत्र

आज विज्ञान एवं बायोटेक्नोलॉजी विषय के प्रश्न पत्र

भिण्ड 18 मार्च 2010

      माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल द्वारा संचालित संचालित कक्षा दसवी हाईस्कूल की परीक्षा में शुक्रवार 19 मार्च को विज्ञान विषय का प्रश्न पत्र होगा। जबकि हायर सैकेण्ड्री कक्षा 12 की परीक्षा में शुक्रवार को बायोटेक्नोलॉजी विषय का प्रश्न पत्र होगा।

 

निजी भवनों में संचालित न हो ग्रामीण राशन दुकाने

निजी भवनों में संचालित न हो ग्रामीण राशन दुकाने

कलेक्टर ने जारी किये निर्देश उल्लघंन पर हटाये जायेगें विक्रेता

भिण्ड 18 मार्च 2010

      कलेक्टर रघुराज राजेन्द्रन ने भिण्ड जिले के ग्रामीण क्षेंत्र के निजी भवनों में संचालित हो रही शासकीय उचित मूल्य दुकानों को आगामी 7 दिनों के भीतर हटाकर ग्राम पंचायत या सामुदायिक भवन से संचालित करने के निर्देश दिये है। जिला आपूर्ति अधिकारी भिण्ड ने बताया कि प्रत्येक उचित मूल्य दुकान के खाद्यान्न विक्रेताओं को दुकान के बाहर पीले वोर्ड पर दुकान खोलने के दिन एवं समय तथा उपलब्ध स्टाक की जानकारी अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने के निर्देश दिये गये है। ऐसे विक्रेता जिनके द्वारा दिये गये निर्देश का पालन नही किया जाएगा वे हटाये जाएगें । इसके अलावा ऐसे समिति प्रबंधक जो निर्देशों का पालन नही करते है उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी होगी।

 

अटेर जनपद पंचायत की स्थाई समिति के गठन की कार्यवाही आज

अटेर जनपद पंचायत की स्थाई समिति के गठन की कार्यवाही आज

भिण्ड 18 मार्च 2010

      जनपद पंचायत अटेर की स्थाई समितियों के गठन की कार्यवाही शुक्रवार 19 मार्च को होगी। सीईओ अटेर ने बताया कि कार्यालय के सभाकक्ष में प्रात:11 बजे से आयोजित बैठक में निर्वाचित सदस्यों से उपस्थित होने की अपील की गई है।

 

फूफ एवं सुरपुरा में विकास प्रदर्शनी 19 को

फूफ एवं सुरपुरा में विकास प्रदर्शनी 19 को

भिण्ड 18 मार्च 2010

      जिला सम्पर्क कार्यालय भिण्ड द्वारा फूफ एवं सुरपुरा  में 19 मार्च  को सूचना सह विकास प्रदर्शनी आयोजित की गई है। इस छायाचित्र प्रदर्शनी के माध्यम से प्रदेश में वीते 6 वर्षो में हुये विकास की गाथा को प्रदर्शित किया जाएगा। उप संचालक जनसम्पर्क भिण्ड सुनील सिलावट ने बताया कि इस प्रदर्शनी के माध्यम से प्रदेश में वीते 6 वर्षो में हुये विकास की गाथा को छायाचित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। आम लोगों से उपस्थित होने की अपेक्षा की गई है।