म.प्र. में बिजली के लिये त्राहि –त्राहि मची, गॉंवों में किसानों को दो दिन बाद दो घण्टे और शहरों में सिर्फ 3 घण्टे मिलती है बिजली
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
यूं जर्रा जर्रा महताब हुआ, मेरा सजन तो आफताब हुआ, उनकी इस अदा का क्या कहिये कि जो बचा खुचा था वो भी सूपड़ा साफ हुआ ।
बदले बदले से सरकार नजर आते हैं, जिनके कन्धों पर पग रख के पहुँचे एक ऊँचाई तलक, आज कहते हैं कि मैं आसमान हुआ ।
आसमां पे उड़ने वाले तेरी पतंग की डोर जिन हाथों में, जरा खौफ खा वरना मत कहना कि ये क्या कमाल हुआ ।
ये जर्रा धूल का, फांकोगे तो ऑंतें फुंक जायेगी, फेफडे चलनी हो जायेंगे, ठोकर मारोगे तो न कहना कि सिर पे सवार हुआ ।
कल तक जिस मिट्टी ने तुझे पुतला बना कर एक भगवान बना दिया, उस मिट्टी को ललकारेगा तो न कहना कि क्या सब्जबाग हुआ ।
तू भूल गया उपने जानो जॉं पर खेल खून के कतरे बहाने वालों को, मत कहना कि ये कतरा तो अब दरिया हुआ ।
ओ कान में तेल औ ऊंगली फंसा के सोने वाले, जिनकी नींद हराम हुयी फिर न कहना कि ये क्या कोहराम हुआ ।
जिद तेरी है इस वतन की मिट्टी को मिटाने की, तो इक जिद मेरी भी है इसे बचाने की, जब दो जिद टकरायें तो न कहना कि व्यर्थ संग्राम हुआ ।
हम तो खिलाड़ी हैं घर फूंक तमाशे वाले, तेरा चमन गर उजड़ा तो न कहना कि ये क्या वीरान हुआ ।
चम्बल के बेटों को शौक है मौत से टकराने का, तेरी वो बिसात कहॉं, गर मौत बन कर हम टूटें तो न कहना कि ये क्या जंजाल हुआ ।
कितना भी उँचा तू उठा अभी मेरे मुकाबिल नहीं पहुँचा, तुझसे छिनने लुटने को काफी है मैं नंगा ही सही, फिर न कहना कि ये क्या किस किस को बचाऊं क्या ये बवाल हुआ ।
दौलत और शोहरत के भ्रष्ट समन्दर में तैरने वाले, हम जो तूफां बन के तेरी किश्ती डुबोये तो न कहना कि ये क्या मंझधार हुआ ।
हसरत है गर तेरी दो दो हाथ की, मन मेरा भी है अब तुझये टकराने का , लगा जोर तू पूरा फिर न कहना कि तुझे कह कर नहीं मारा ।
यूं अब आही जा मुकाबिल मेरे, मैं हिन्दुस्तान तो तू पाकिस्तान सही, तेरी हसरत और मेरा मन भर जायेगा फिर न कहना कि मुकाबला ही कहॉं हुआ ।
क्या जरूरत कंस की रावण की औ किसी अन्य शैतान की, तू तो सबका नया अवतार हुआ ।
उस्ताद समझता है तो आ सामने, हो दो दो हाथ तुझसे यूं छुप छुप के लड़ता है तो भरम दोस्ती का होता है, आ दुश्मन की तरह टकरायें वरना फिर न कहना कि तेरा तो कत्लेआम हुआ ।
कहने को संभागीय मुख्यालय है शहर मुरैना लेकिन बिजली कटोती के हाल इतने बदतर कि महज तीन घण्टे ही शहरवासीयों को 24 घण्टे के दरम्यां मिलती है बिजली, न कोई सुनने वाला न कोई निराकरण करने वाला यहॉं वम्बल संभाग का कमिश्नर और मुरैना जिला का कलेक्टर दोनो ही बैठते हैं लेकिन जनता की समस्याओं से पूरी तरह नावाकिफ ये दोनो अधिकारी अपनी अपनी धींगामस्ती में मस्त हैं । गॉंवों के हाल तो और भी बदतर हैं गॉंवों में रबी की फसल जब सिंचाई के लिये तरस रही है तब उन्हें दो दिन में एक बार यानि 60 घण्टे में महज दो घण्टे बिजली आपूर्ति की जा रही है, अब फर्जी सरकारी दावों की पोल खोलती नीचे किसानों के साथ गुजारी एक रात की दास्तां हम यथावत यहॉं दे रहे हैं हालांकि इसमें चम्बल की ठेठ देहाती भाषा में बातें कहीं गईं हैं और कुछ गाली गलौज की भाषा भी किसानों द्वारा प्रयोग की गयी है लेकिन बात तो थी उसे साहित्यिक और परिष्कृत रूप देकर हम नहीं चाहते थे कि बात की तासीर या ग्रामीणों के आक्रोश का इजहार कमतर हो जाये । सो लिहाजा जो सच है हम बेबाक यहॉं दे रहे हैं, हमने ग्राम और ग्रामीणों के नाम यहॉं जानबूझ कर प्रकाशित नहीं किये हैं हम नहीं चाहते कि वे किसी भी राजनीतिक या सरकारी या अफसरी कोपभाजन के वे भोले भाले निर्दोष लोग शिकार हों । वक्त पड़ने पर हम सारी वार्ता साबित करने में सक्षम व समर्थ हैं ।
अभी लगे हाथ बताता चलूं कि मुझे चम्बल के कई गॉंवो का एक साथ दौरा करने को मिला , मेरे बचपन के कुछ ग्रामीण मित्रों ने मुझसे रात को एक गॉंव में हुये चौपाल पर चौगोला (यह काव्य की ग्रामीण लोक विधा है ) सम्मेलन में बैठने का आग्रह किया और अपने विचार उन्हे बताने तथा उनके विचार जानने की विनयपूर्ण आमंत्रण दिया । मैं हालांकि काफी थकावट महसूस कर रहा था लेकिन ग्रामीण दोस्तों (भई मैं स्वयं भी ग्रामीण परिवेश का हूँ – मेरा जन्म चम्बल के गॉंव में हुआ, वही पला बढ़ा और थोड़ी बहुत पढ़ाई लिखाई भी गॉंव में की, गाय भैंस चराने से लेकर, हल जोतने और सभी किसानी कार्यों का मुझे लम्बा मैंदानी अनुभव है ये दीगर बात है कि बाद में उच्च स्तर तथा प्रायमरी माध्यमिक और अन्य शिक्षा दीक्षा ग्वालियर, भिण्ड और भिलाई –दुर्ग, मुरैना आदि जगहों पर हुयी ) पर मेरे गॉंव का नाता अभी तक कायम है, मेरी पैतृक जमीन जायदाद खेती बाड़ी अभी कायम है सो गॉंव से नाता भी बदस्तूर कायम है तथा पुरानी रजवाड़ी, फिर जागीरदारी, जमीन्दारी भी रही है सो सारे रिश्ते अभी तक मुकम्मल कायम हैं)
अब अगर इन सब ऐतिहासिक बातों के कायम रहते तोमर राजपूत इस देश के अभिन्न अंग होकर न्यायप्रिय, क्रोधवान एवं मर मिटने की कूबत से संपन्न होकर अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने में सबसे आगे हैं और बगावत कर बागी बनते हैं तो इसमें न तो तोमरों का दोष है और न मेरा, यह इस वंश का स्वाभाविक लक्षण है, वंशगत तेज है, वाणी में ओजस्विता वंशगत है तो अपनी ऑंख के सामने अत्याचार देख कर ऑंखे बन्द करना तो किसी भी राजपूत के स्वभाव में नहीं होता किन्तु तोमरों को यह गुण विशिष्ट व प्रचुर रूप से मिला है, यही एक वजह है कि चम्बल में बगावत होती आयी है और बागी पैदा होते आये हैं , जब तलक अत्याचार, अन्याय और सरकार का अनसुनापन जारी रहेगा तब तक चम्बल में बागी पैदा होते रहेंगे इसमें कोई संशय नहीं है ।
अब अगर –
सच कहना अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी है
यदा यदा हि धर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम् परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम, धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।
(इसके अलावा देखें श्लोक संख्या 31 अध्याय 2, 38 अध्याय 2 तथा 43 अध्याय 18 श्रीमद्भगवद्गीता)
गॉंव के किसानों के बीच रात को जब चौपाल पर चौगोला मण्डली जमी तो कई किस्से भोले भाले ग्रामीणों ने अपने ग्रामीण अंदाज में बता डाले मुझे कई चीजें जानकर हैरत हुयी और विचार करने पर मजबूर हो गया मसलन सुनिये उस रात की बातों के चन्द अंश, ऊपर लिखी शेर और मुक्तक नामक कविता भी मुझे एक ग्रामीण कवि ने सुनाई उनका नाम दिनकर सिंह तोमर था और वे सिंहोनयां के प्रतिष्ठित जमीन्दार परिवार (पूर्व सरपंच परिवार ) से ताल्लुक रखते हैं ।
'' काये आजकल्लि तिहाई सरकार का रहि है'' कछु फायदा तो दीख नाने रहो उल्टी मंहगाई बढि़ति जाय रही है''
दूसरे ने कहा कि सरकार का करेगी , चुनाव में खच्च करो है एक एक नेता कूं चुनाव लड़ायवे दो दो करोड़ रूपया पार्टीयन ने अपने अपने प्रत्याशीयन को दये हते, अब वा पैसा ए निकार रही है, शक्कर मंहगी, दार (दाल) मंहगी, साग (सब्जी) मंहगी जे सब पैसा वापस काढ़वे (निकालने) के इंतजाम हैं ।
वे फिर बोले तो ''काये तो जि सिबराजु काये ना कछ़ु कर रहो''
दूसरे ने कहा कर तो रहो है, बनियन की शक्कर पकरि लई, जब पकरी तब बातें पहले तऊ सस्ती हती बाने तब ते पकरी है तईं और जादा मंहगी करवाय दई । पकरीयई जईं के लईं हती ताते दाम और जादा बढि़ जाये और बनिया कछू कमाय लें, बनियन ने बऊये तो चन्दा दओ होगो सो कढ़वावेगो के नहीं । और फिर जा नरिन्दा कोऊं तों बनियन ने वोट दये हते सूनी है कि बनियन को भारी कर्रो चेला है, कमाई करवे वारे सिग कमाऊ पूत अधिकारी वाके चेला हैं, वाये जनता फनता ते कछु मतलब फतलब नानें , जब आवतु है तो नौटंकी सी करिकें चलो जातु है ।
बीच में एक और ग्रामीण टिप्पणी करता है कि हओ जोईं है सारो बातन ते करदे खुसी, मोंह (मुंह से) सो नहीं लगन दे भुसी (भूसा)
पहले वाले सज्जन फिर बोले पनहियन लायक है, सारे की जमान्त जप्त होगी, देखिये ये किस्सा उस जगह का है जो भाजपा के बरसों पुराने गढ़ रहे हैं और तोमर राजपूतों के दबदबे वाले ठीये हैं ।
चर्चा आगे बढ़ती है तब तक एक सज्जन हुक्का सुलगा लाते हैं, एक अन्य किसान बोलता है मार डारे सारेन ने, बिजली हति नानें , नहर आय नाने रही, खेत सूखि चले, अबकी में तो गेहूँ सरसो को कोऊ हिल्लो नानें । वो तो वोट ले कें दुबक के भजि गयो , अब गामन तन कों आवतु ऊ नानें । भई ते भजि जागो कभऊं कहेगो स्टेडियम बनवावेगो कभऊं कहेगो के अण्डरब्रिज बनवावेगो । जा मूसरसेटी ये जे पूछो के अम्बाह में ठौर कहॉं धरो है सो बनवावेगो स्टेडियम ।
दूसरा किसान तुरूप का पत्ता फेंकता है, बनवावेगो तिहाये हमाये खेत लेकें, बाने सिग ठाकुर नेता तो जिले ते खतम कर दये, कछू ठाकुर एनकाउण्टरनि में मरवाय डारे, अब बचे खुचेन के खेतन (खेतों को) लीलें (लीलना) चाहतु है ।
दूसरा किसान तड़ाक से बोलता है – आवन देओ सारे ऐ घाट उड़ाय देंगे, आवेगो तो झईं अबकी औंधी सीधी दे तो डार लेओ सारें कों । और इतेक देओ के गैल भूल जाये ।
एक और नौजवान बीच में बोलता है जा सारे में तो दस दे और एक गिने ।
परि जे केन्द्र की सरकार का करि रई है जा सारे के झां तो छापो परनो चहीयें, एक वा मिसरा के झां जे सारे दोऊ बदमास हैं, एक तो पानी पी गयो पूरो फिर बिजली लील गयो, हमनि सुनी है कि इंजीनियर कालेज सोऊ चलाय रहो है, बड़ भारी कमाई करी है, दोऊ जने अरबन रूपय्यन के मालिक हैं गये हैं । छापो डरवाय दे केन्द्र वारें सोईं नप जागें दोऊ फीता लगाय के , के लला ला बताया कितेक कितेक कमाये हैं तैंने सारेन के लाकर होगें, करोड़न के माल कढ़ेंगे ।
दूसरा किसान बोलता है अये जिनके तो बिदेसन में खाते होंगे । अफसर बन गये जिनके राज में, चपरासीन के बंगला तन गये मोबाइल ने बतराउठे, कार ले ले कें चलाय रहे हैं ।
अब एकदम सब मुझसे मुखातिब होते हैं काय रे तू कैसो चुप्प बैठो है, कछू बोल्तु काये ना ।
मैंने कहा अब तुमई सिग कछु कहिवे चिपटे हो अब हम का कहें । हम तो जे कहि रहे हैं चुप्प रहू, पुरानी कहावत है कि ''रहिमन चुप है बैठिये देखि दिनन को फेर'' सो भईया हम तो चुप्प है , पर तुम जे सब बातें कहि रहे हो जे सब गैर कानूनी हैं अगर काऊये पतो लग गईं तो सिगते पहले तिहाओ एनकाउण्टर करवाय डारेगो ।
एक किसान गुस्से में खौल जाता है, अये तू तो कहेगो ही, तैंनेंई वाये वोट देवेके लईं कही हती सो अब रोय रहे हैं, दो दिना बाद बिजली आय रही है दो घण्टा के काजें हमनि पूछि हमनि पे का बीत रही हैं । जा जाय के कहि दीयो वाते हमाओ करवाय दे एनकाउण्टर, कटवाय दे मूसर । जाते तो रूस्तम तऊ ठीक हतो, भलेऊं गूजर हतो, सुनि तऊ लेतो भलेऊं कछू करतु नहीं हतो । जा तू हमनि फांसी चढ़वाय दीयो । बई बरेह के पीपरा पे ।
मैंने बात संभालते हुये कहा कि भई जे सब बातें गुस्से से नहीं ठण्डे दिमाग से भी तो हल हो सकतीं हैं, अब जो बिगड़ गया सो बिगड़ गया, आगे ठीक कर लेओ, आगें सो वाय वोट मत दीओ ।
दूसरा किसान और ज्यादा आक्राशित हो जाता है , का वोट मत दीओ बुआ वो कलेक्टर भ्रष्ट बैठो है, काऊये वोट दे अईयो पेटी खुलेगी तो बई के ई वोट कढ़वावेगो । सारे ने ठाकुरनि की तो सिगई सीट रिजरब कर दईं हैं, लेउ सारे हो कैसे लरोगे चुनाव । मैंने कहा कि भई अभी तो नगरपालिका के आरक्षण की प्रक्रिया हुयी है, ग्राम पंचायत की तो बाद में होगी, अभी कैसे कह सकते हो कि ठाकुरों की सीटें रिजर्व कर दी जायेंगी........
लगे हाथ मेरी बात पूरी होने से पहले ही किसान उखड़ता हुआ बोला कि अये लला हमनि सिग पतो है हमऊं नेकाध राजनीति जान्त हैं । नगरपालिका में तहॉं हरिजन हतई नाने ते सीटें हरिजन कर दई हैं , सारे ठाकुर बामन तो अब पारसद अध्यक्ष कितऊं बनई नानें सकतई, वो अपईं गैल के काटें झार रहो है । वाने सिग ठाकुर बामननि की गैल बन्द कर दईं हैं और देखि लीयो हमऊं चैलेन्ज ते कहि रहे हैं, सारो पंचायतिन में ऊ जिई करेगो । सिग ठाकुर बामननि ए घर बैठारेगो । और तऊ एकाध कितऊं ते लरेगो तो सरकार बाई की है लबरई ते मशीनन में तो और पेटीन में तो बई के वोट कढ़ेंगे ।
मैंने आगे बहस उचित नहीं समझी और नहंद आने का बहाना करके खिसक कर अपने पलंग पर जा लेटा ।
लेकिन ग्रामीणों की उन बातों ने मुझे झिझोड़ कर रख दिया । उनकी समझ और तर्कों के आगे मैं खुद को काफी बौना महसूस कर रहा था ।
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