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शनि अमावस्या पर शनि मन्दिर में बड़ी संख्या में श्रध्दालुओं ने शनि देव के दर्शन किये
सुविधा की दृष्टि से प्रशासन की व्यवस्था चाक चौबन्द
ग्वालियर 25 अप्रैल 09। शनि अमावस्या शनिवार के दिन होने से इसका विशेष महत्व है। इस दिन शनि महाराज का तेल से अभिषेक फलदायी होता है। मुरैना जिले के ग्राम एेंती में स्थित देश के प्राचीन शनि मन्दिर में आज शनिदेव के लोगों ने दर्शन किये। इस मन्दिर में दर्शनों के लिये उमड़ी भीड़ इस बात का प्रमाण है कि भक्तों की मनोकामना, सिध्दि एवं उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
ग्वालियर जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर मुरैना जिले के एेंती ग्राम में स्थित शनि मन्दिर में बड़ी संख्या में श्रृध्दालुओं ने शनिदेव के दर्शन किये तथा प्रतिमा की प्रतिकृति पर तेल चढ़ाया। पूरा शनिचरा पर्वत सिध्दस्थल होने से श्रृध्दालुओं ने मुण्डन करवाया एवं शनिदेव का दर्शन लाभ लिया। दर्शन के बाद लोगों ने अपने पुराने वस्त्र, जूते एवं चप्पल का त्याग किया, जो यत्र तत्र विखरे पड़े थे। शनिदेव के दर्शन का सिलसिला कल रात्रि से प्रारंभ हुआ जो आज शाम तक निरन्तर चला। इस सिध्द स्थान पर दर्शन लाभ लेने के लिये आसपास के जिलों के अलावा राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं देश के विभिन्न प्रदेशों से बड़ी संख्या में श्रृध्दालु आते हैं।
ज्योतिष एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार .... शनिदेव सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के पुत्र हैं । ज्योतिष की अवधारणा के अनुसार शनि एक राशि पर तीस माह तक भ्रमण करते हैं । शनि भगवान शंकर के शिष्य हैं । भैंसा शनि का वाहन है । कहते हैं कि हनुमान जी ने घायल शनि के जख्मों पर तिल्ली तथा सरसों के तेल के फोहे रखे जिससे उन्हें आराम मिला । तभी से शनिवार को शनिदेव के तैलाभिषेक की परम्परा प्रारंभ हुई । ज्योतिषविद्ों का मानना है कि शनि न तो पीड़ादायक ग्रह और न ही भयभीत करने वाला। शनि वस्तुत: भक्तों को सौम्यता, शालीनता , न्याय प्रियता और अध्यात्मपरक मानसिकता का दाता है । शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है । मिथुन , कन्या, तुला और वृष राशियां इसकी मित्र हैं । गृहों में बुध और शुक्र शनि के मित्र गृह माने जाते हैं । शनि को नीलम, लोहा, काली उड़द, काले तिल, नमक, शीशम , काले रंग की वस्तुएं, तेल, नाग व भैंस आदि का स्वामी भी माना जाता है । शनि कल कारखानों व मशीनरी आदि सहित रहस्य विद्या और सफलता का द्योतक भी माना जाता है। | खगोलविदों के अनुसार...
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जनश्रुति एवं महन्त शिवराम दास त्यागी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार शनि पर्वत क्षेत्र मे विश्व प्रसिध्द शनिदेव महाराज का मन्दिर अति प्राचीन काल से स्थापित है। इसकी स्थापना त्रेताकालीन मानी जाती है। किवदंतियों के अनुसार सृष्टि रचना के समय शनि पर्वत की भी रचना हो चुकी थी। संवत 1734 में शनि की शिला अहमदनगर गई थी, जहां अनंतगंगा में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे शिंगणापुर कहते हैं। महंत शिवराम दास त्यागी बताते है कि शनि मंदिर की देखरेख का जिम्मा अनेक तत्कालीन शासकों का रहा। इनमें कुंतलपुर नरेश, कछवाहा, तोमर, गोहद के राजा हुकुमसिंह, राजस्थान के जाट शासक आदि शामिल हैं। वर्तमान में मॉफी औकाफ के पास मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी है। शनि मंदिर अब भव्य रूप ले चुका है तथा आगे इसे और भी भव्यता प्रदान करने की योजना है।
शनि के पिता सूर्यदेव व माँ छाया तथा यमराज के बड़े भाई हैं। शरीर विशालकाय एवं श्यामरंग का है, जो शिवजी को अत्यंत प्रिय है। शनि ग्रहों में प्रधान न्यायाधीश माने जाते हैं, जो हाथों में लोहे का बना त्रिशूल, धनुष-वाण लिये हुये एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में भक्तों को अभयदान देने वाले है। शनि की बहन-यमुना, गुरू -शिवजी, गोत्र -कश्यप, रूचि -अध्यात्म, कानून, कूटनीति, राजनीति, जन्मस्थान -सौराष्ट्र, स्वभाव- गंभीर, त्यागी, तपस्वी, हठी, क्रोधी, अन्य नाम- कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, सौरी, शनैश्चर, कृष्णमंद, रौद्र, आतंक व यम, प्रिय सखा-कालभैरव, हनुमान जी, बुध, राहु, प्रिय राशि-कुंभ, मकर, अधिपति-रात, कार्यक्षेत्र-धरती का न्यायदाता, प्रियदिन-शनिवार-अमावस, रत्न-नीलम, प्रिय वस्तुयें-काली बस्तुयें, काला कपड़ा, कड़वा तेल, गुड़, उड़द, खट्टा, कसैले पदार्थ एवं प्रिय धातु लोहा व इस्पात है।
शनि पर्वत पर शनिदेव के दर्शन के लिये आने वाले श्रध्दालुओं को कोई अवुविधा न हो, इसके लिये प्रशासन द्वारा चाक चौबंद व्यवस्थायें की गईं। दर्शन के समय व तेल चढ़ावे के समय अधिक लोग एक साथ इकठ्ठे नहीं होने पायें, इसके लिये लोहे का मजबूत बेरीकेटिंग किया गया है। बेरीकेटिंग में श्रध्दालु फब्बारों से स्नान भी कर सकते हैं। पीने के लिये शीतल पेयजल एवं छाया के लिये जगह-जगह टेंट लगे हुये थे। साथ ही ठहरने के लिये धर्मशालायें भी बनीं है। शनि मेला में आने वालों के लिये स्वयंसेवी संगठनों की ओर से पेयजल एवं प्रसाद की नि:शुल्क व्यवस्था थी। हरियाणा राज्य के सिरसा के स्वयंसेवी संगठन द्वारा श्रध्दालुओं के लिये नि:शुल्क भोजन व्यवस्था की गई थी। मेला स्थल पर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नूराबाद के शासकीय चिकित्सक डॉ. एल आर. किसनियाँ के मार्गदर्शन में चिकित्सा दल श्रध्दालुओं के उपचार में सेवारत है। चिकित्सा दल के पास आवश्यक दवायें, एम्बुलेंस एवं चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। मेला में आयुर्वेदिक उपचार की सुविधा भी सुलभ है।
मेला में कानून व्यवस्था की दृष्टि से चाक चौबंद बन्दोवस्त किये गये हैं। जगह-जगह कार्य पालिक मजिस्ट्रेट तथा पुलिस अधिकारी तैनात है। साथ ही यातायात की दृष्टि से भी बेहतर इन्तजाम किये गये हैं। मेला स्थल पर मुंडन करने वाले नाइयों का पंजीयन कराया जा रहा है तथा प्रसाद की दुकानें व्यवस्थित तरीके से लगाई गई हैं।
भिण्ड- मुरैना तेज हुआ घमासान, राजनीतिक सुपर स्टारों का मेला और जमीनी युद्ध का बिगुल बजा
चुनाव चर्चा-4
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
भिण्ड सीट पर क्लीयर कट कांग्रेस की विजय और खतरे में भाजपा की खबरों से भाजपाई रणखेमे की नींद अचानक उड़ गयी है । लम्बे अर्से से भाजपा के गढ़ रहे भिण्ड और मुरैना में जहॉं अबकी बार मुरैना वापस क्लीयर कट भाजपा को प्रचण्ड वोटों के साथ मिलने और कांग्रेस को इसी तरह भिण्ड की सीट जाने और प्रचण्ड जीत दर्ज कराने की खबरें निसंदेह भाजपा के लिये चिन्ता जनक है मगर ऐसा हो रहा है और किया भी क्या जा सकता है ।
भिण्ड में भाजपा के ढेर होने जा रहे गढ़ के पीछे या कांग्रेस के जीतने के पीछे की वजह महज मात्र प्रत्याशी आधारित चुनाव हो जाना है । न तो भिण्ड में और न मुरैना में ही पार्टीयों के नाम की बकत इस समय है और न पार्टीयों के नाम का कोई असर ही अबकी बार के चुनाव पर ही है ।
डॉ भागीरथ भिण्ड के लोगों की निजी पसन्द हैं, इसे भाजपा दरकिनार नहीं कर सकती । भागीरथ कोई आजकल से नहीं बल्कि कई वर्षों से भिण्ड के लोगों की जुबान पर चढ़े हुये हैं, भिण्ड वाले गाहे बगाहे डॉ. भागीरथ के नाम पर गर्व करते आये हैं । जबकि भाजपा प्रत्याशी अशोक अर्गल भिण्ड की जनता के लिये नये व अपरिचित चेहरे हैं । डॉं भागीरथ अगर भिण्ड से लड़ने गये हैं तो उनके पॉजिटिव पाइण्टस भी हैं शायद यही सोच कर डॉ भागीरथ ने भिण्ड से लड़ने की इच्छा जताई होगी । अशोक अर्गल के पास अभी भिण्ड में किसी भी उपलब्धि का बखान करने या श्रेय लेने के लिये भी कुछ नहीं हैं । मुझे लगता है भिण्ड में भाजपा के लिये केवल इज्जत बचाने की लड़ाई ही शेष बची है ।
राजपूत वोटिंग के लिये मारामारी
भिण्ड में चुनाव प्रचार के इस आखरी चरण में राजनीतिक दलों के बीच राजपूत वोटों को हथियाने की जमीनी जंग शुरू हो गयी है । जहॉं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने भिण्ड में ताबड़तोड़ सभायें लेकर आक्रामक हमले तेज कर दिये हैं वहीं भिण्ड में कल से राजपूत नेताओं और राजनीतिक सुपर स्टारों का मेला लगने जा रहा है । कल जहॉं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह परेड चौराहे पर सभा को संबोधित करेंगें वहीं, कांग्रेस के राजपूत नेता भी कल से ही भिण्ड में आगाज करेंगें कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के म.प्र. के अध्यक्ष अजय सिंह ''राहुल भैया'' जहॉं भिण्ड के कई गॉंवों में जिसमें बबेड़ी भी शामिल है डॉं भागीरथ के लिये प्रचार करेंगें, उल्लेखनीय है कि म;प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह का चम्बल के भिण्ड और मुरैना क्षेत्र के लोगों में काफी सम्मान और प्रभाव है, अजय सिंह राहुल भैया भी अपने मंत्री काल में भिण्ड और मुरैना में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ कर अंचल के नौजवानों में खासा प्रभाव और आकर्षण रखते हैं । निसंदेह राजपूत वोटिंग ही नहीं बल्कि अन्य जातियों व समाजों की वोटिंग भी राहुल भैया के दौरे से काफी प्रभावित होगी । मुझे लगता है कि कांग्रेस को राहुल भैया को भिण्ड में लगातार कई कार्यक्रम करवाना चाहिये थे । फायदा कई गुना बढ़ जाता । दिग्विजय सिंह ने भाजपा के इस अभेद्य गढ़ को काफी हद तक भेद दिया है और भाजपा की बुनियादें हिला कर खोखला कर डाला है । राहुल भैया भी इस क्षेत्र में यही काम और भी अधिक सशक्त ढंग से कर सकते हैं
भिण्ड में राजनाथ सिंह और राहुल भैया के कल के कार्यक्रमों के बाद 26 को प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी तथा उनके ठीक पीछे 27 अप्रेल को कांग्रेस के राहुल गांधी के कार्यक्रम देखने को मिलेंगें । इस बीच दिग्विजय सिंह के कमरतोड़ झटके अभी भिण्ड के भाजपाईयों को और झेलने पड़ेंगे । अभी तो हालात ये हैं कि दिग्विजय सिंह का नाम सुनते ही भाजपाईयों को पसीने छूट जाते हैं । फिलवक्त दोनों पार्टीयों ने भिण्ड कवर करने के लिये राजपूत नेताओं की पूरी फौज झोंक दी हैं और घमासान तकरीबन युद्ध जैसे माहौल में बदल गया है ।
लो भईया भिण्ड में लव मैरिज और मुरैना में अरेंज्ड मैरिज, गुना ग्वालियर में दिल वाले दुल्हनियां ले जायेगे
आज दैनिक भास्कर ने चुनाव को दूल्हा, ई.वी.एम. को दुल्हन और मतदान को बारात कहा है, इससे मिलता जुलता किस्सा ग्वालियर चम्बल की चारों सीटों पर भी चल रहा है, इन चारों सीटों की सिचुयेशन कुछ यूं वर्णित की जानी चाहिये कि भिण्ड में लव मैरिज (मन पसन्द प्रत्याशी) , मुरैना में अरेंज्ड मैरिज (झेलना पड़ेगा मजबूरी का प्रत्याशी) , गुना और ग्वालियर में दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे ( आल्हा ऊदल की तरह जंग करके दुल्हन हासिल की जायेगी) गुना ग्वालियर में दूल्हों की बारात पहले से ही घूम रही है और मुरैना भिण्ड में बारात अभी सज रही है ।
मुरैना आखिर चल ही गयी भेलसा की तोप
भाजपा ने मुरैना में जिस तरह सभी वल्नरेबलिटीयों का सूपड़ा साफ किया है, भाई वाकई नरेन्द्र सिंह तोमर की दाद देनी ही पड़ेगी । समानता दल के रमाशंकर शर्मा को भाजपा में दल सहित विलय करके अपने खिलाफ लगभग सारी बल्नरेबलिटीयों का सूपड़ा साफ कर दिया है । मैं समझता हूं इसका दूरगामी परिणाम भी बहुत लाजवाब होगा । राजनीतिक तौर पर मुरैना में नरेन्द्र सिंह तोमर ने भाजपा की जड़े इतनी पुख्ता और गहरी कर दी हैं कि अब यहॉं भाजपा से पार पाना किसी के बूते की बात नहीं होगी । नरेन्द्र सिंह तोमर ने जिस कदर हवा में तलवारें भांजी है उससे सारे राजनतिक आसमान के परिन्दे कट कट कर अपने आप उनकी झोली में आ गिरे हैं, यह वाकई हैरत अंगेज है । काबिले तारीफ है, भईया कुछ तो हमारे लिये छोड़ देते ।
वोटिंग वल्नरेबलिटी का आखरी धड़ा गूजर वोटों को एक मुश्त अपनी झोली में पटकने के लिये आखिर नरेन्द्र सिंह तोमर ने तुरूप का इक्का चल ही दिया, एक पूर्व मंत्री के कारण गूजर वोट वल्नरेबल हो गये थे और कॉग्रेस की झोली में जाने के लिये बेताब हो उठे थे । उधर कॉंग्रेस प्रत्याशी ने मीणवाद का कार्ड खेला इधर भाजपा ने गूजर कार्ड आखिर चल ही दिया, गूजरों के हीरो कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला को आखिर मुरैना बुलवा ही लिया । इसके साथ ही मुरैना गूजर मतों की वल्नरेबलिटी पूरी तरह खत्म होकर नरेन्द्र सिंह तोमर के लिये एकमत हो जायेगी । पिछड़े वर्ग की अन्य जातियां पहले से ही राजपूतों की पक्षधर हैं । (यह चम्बल और राजपूताने का अनचेन्जेबल स्वत: संचालन सिस्टम है)
कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला का आगमन निसंदेह कांग्रेस के रामनिवास के लिये अंतिम आस टूटने का स्पष्ट संकेत है । उल्लेखनीय है कि कर्नल बैसला का मुरैना के गूजरों पर अंध प्रभाव है और इस प्रभाव को डाउन करने का कोई तोड़ फिलहाल कांग्रेस के पास नहीं है । कर्नल जहॉं भी कहेंगे, गूजर वहीं जायेंगे । अब कोई भी चिल्लाता रहे, गूजर कुछ भी नहीं सुनेंगे । इस गलती की शुरूआत रामनिवास रावत ने मीणा कार्ड खेल कर की । मीणा वोट मुरैना सीट पर जहॉं नाममात्र के हैं वहीं भाजपा के मेहरबान सिंह रावत तथा पूर्व विधायक बूंदीलाल रावत एवं मुरैना के किरार यादवों द्वारा जो तोड़ फोड़ सबलगढ़ विजयपुर क्षेत्र में की जानी है वह भी रामनिवास के लिये खतरनाक है । कर्नल बैसला कल करहधाम पर सबेरे 11 बजे गूजरों की पंचायत लेंगे और नरेन्द्र सिंह तोमर के पक्ष में मतदान के लिये गूजरों से अपील करेंगे । इस क्षेत्र में ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर की रानी मृगनयनी के वंशज तोंगर गूजरों की भी भारी संख्या है जिनका पहले से ही झुकाव तोमरो के प्रति है ।
करहधाम यूं तो उ.प्र. के सिकरवारों की मिल्कियत है और इस आश्रम का पूरा कण्ट्रोल यू.पी. के सिकरवार राजपूतों के पास है लेकिन गूजरों का यह सर्वमान्य तीर्थ स्थान है और मुरैना में इसका नियंत्रण संचालन और सम्पादन पूरी तरह गूजरों के हाथ है, इस आश्रम की विशिष्ट मान्यता यह है कि करह आश्रम से चला हुक्म गूजरों के लिये परामात्मा का एकमात्र आदेश है और जिसका उल्लंघन कतई नहीं हो सकता ।
दूसरा तीर्थ इसी क्षेत्र शनीचरा मंदिर है, जहॉं शनिदेव की प्रतिमा स्थापित है , संयोगवश कल यहॉं भी शनीचरी अमावस का मेला भरेगा । और इस मेले पर भी बैसला को भाजपा ले जा सकती है वहीं कल यह मेला राजनीति का मेला बन सकता है ।
भाजपा के लिये सिर्फ शहरी मुसलमान बल्नरेबलिटी शेष है, ग्रामीण मुसलमान तो विशुद्ध तोमर राजपूत हैं जिन्हें औरंग जेब ने मुसलमान बना दिया था । अत: ग्रामीण मुसलमान मत स्वत: ही भाजपा की ओर मुड़ गये हैं ।
आग लगाऊ दिग्विजय सिंह की सभाओं में सरकार भेजती है फायर ब्रिगेड
चुनाव चर्चा-3
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
आज के अखबारों में खबर छपी है हालांकि खबर का शीर्षक तो दुखद है लेकिन खबर के भीतर जो खबर है वह काफी हैरत अंगेज है, कम से कम मैं तो इसे पढ़ कर चौंक ही गया । खबर भिण्ड जिले के एक गॉंव के बारे में हैं, कल भिण्ड जिला में एक गॉंव आग लग गई तकरीबन 20 घर पूरी तरह जल कर खाक हो गये, सरकारी आकलन के मुताबिक 15 लाख का माल मशरूका जल कर भस्म हो गया ।
वैसे तो इन गर्मी के दिनों में एक तो विकट गर्मी के कारण हर चीज सूख कर ईंधन बन जाती है ऊपर से गर्म हवा की लपटों से जरा सी चिंगारी भी विकराल रूप धारण कर लेती है । हर साल अकेली चम्बल ही गर्मीयों में करीब 1 से 7-8 करोड़ रू का नुकसान आग से झेलती है । कई वजह से आग लगती है, कभी बिजली के शॉर्ट सर्किट से तो कभी सिगरेट बीड़ी के ठूंठ से तो कभी चूल्हे या बरोसी से उड़े तिलंगों से । चिंगारी से भड़कने वाली यह आग कभी ज्वाला बन जाती है तो कभी समूचे गॉंव या खेत खलिहान को भस्म कर डालती है । मैं जब छोटा सा था तब से अब तक यह आग देखता आ रहा हूँ हर साल लगती है और सैकड़ों किसानों ( कई जगह के ग्रामीण तो भूमिहीन होकर केवल पशुपालन या अन्य लोगों के खेतों में मजदूरी पर ही आश्रित हैं) व ग्रामीणों का सब अन्न दाना , कपड़ा लत्ता सब लील जाती है । मुझे लगता था कि मैं कुछ बना तो जरूर गरीब ग्रामीणों की इस समस्या के लिये कुछ न कुछ करूंगा । खैर चलो हम तो बन नहीं पाये लेकिन जो लोग बने उन्होंने कभी गरीब ग्रामीणों के इस आपत्ति काल व आकस्मिक समस्याओं के बारे में कभी नहीं सोचा, उन्हें अपनी वी.आई.पी. जिन्दगी से नीचे इस आम जिन्दगी की ओर झांकने का मौका तक नहीं मिला ।
किसी नेता या पत्रकार के लिये एक गॉंव का आग में स्वाहा हो जाना या लाखों करोड़ों का नुकसान हो जाना महज एक समाचार हो सकता है लेकिन एक गरीब किसान या ग्रामीण जो कि साल भर की पूरी मेहनत के साथ अपने पूरे घर गॉंव को जल कर भस्म होते देखता है, तो उसकी ऑंखों के ऑंसू थमने का नाम नहीं लेते और चन्द पलों के भीतर वह राजा से रंक हो जाता है । और मालिक से मजदूर बन जाता है, साल भर के पेट पालन के लिये न जाने क्या क्या बेचने और गिरवी धरने पर मजबूर हो जाता है । यहॉं तक कि बहू बेटियों की अस्मत भी । किसी नेता या किसी पार्टी ने हर साल गरीब ग्रामीणों पर आने वाली इस तयशुदा विपदा के लिये न कभी डायजास्टर मैनेजमेण्ट चलाया न इसके लिये कोई राहत कोष ही कभी स्थापित किया ।
किसान आयोग बनाने और खेती किसानी को मुनाफे को धन्धा बनाने या उद्योग का दर्जा देने की बात करने वाले सब इस मुद्दे से अनजान, बेपरवाह और खामोश है । किसान का घर जलना तो जैसे आम बात है , उफ शर्म शर्म शर्म ....
मुझे लोगों के लॉंक (फसल का ढेर गॉंवों में लॉंक कहा जाता है) के साथ साल, रोजी रोटी और सपनों को जिन्दा जलते देखने का अवसर कई बार मिला है । मुझे तकलीफ होती है । हर खबर जैसे मुझे झिंझोड़ देती है ।
आज भिण्ड के बारे में खबर अखबारों में आयी तो तकलीफ हुयी, भिण्ड से मेरा बहुत पुराना गहरा नाता है, पूरी प्रायमरी तक पढ़ाई लिखाई मुझे भिण्ड में ही नसीब हुयी वहीं सन्त कुमार लोहिया जैसा आदर्श गुरूओं की शिष्यता मुझे प्राप्त हुयी उनके आशीर्वाद और वरद हस्त ने मुझे ज्ञान और विवेक से परिचित कराया, राकेश पाठक (नई दुनिया के सम्पादक) प्रवीर सचान (इसरो के वैज्ञानिक) से लेकर विदेशों में सेवायें दे रहे बड़े बड़े वैज्ञानिक और इंजीनियर भारत की उच्च स्तरीय सेवाओं में पदस्थ कई अनमोल मित्र भी मुझे भिण्ड से ही मिले । आगे चल कर ससुराल भी भिण्ड ही बन गयी । संयोगवश लोकसभा चुनाव भी मैंने भिण्ड से ही लड़ा ।
भिण्ड में डॉं रामलखन सिंह (वर्तमान सिटिंग सांसद) के विरूद्ध मुझे लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका किला, उनका भी सांसदी का वह पहला चुनाव था मेरा भी यह पहला अवसर था । फर्क यह था कि वे भाजपा के बैनर पर थे हम पैदल थे । बाद में आगे चलकर डॉ. रामलखन सिंह भी हमारे रिश्तेदार बन गये ।
डॉं. रामलखन सिंह के हवाले से अखबारों में छपा है कि गॉंव में आग लगने की खबर उन्होंने प्रशासन को दी लेकिन प्रशासन ने कहा कि फायर ब्रिगेड उपलब्ध नहीं हैं, भिण्ड जिला में म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री औंर कॉंग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह की सभायें हो रहीं हैं सो फायर ब्रिगेड दिग्विजय सिंह की सभाओं में गयीं हैं ।
मुझे इस खबर से झन्नाटा लगना था सो लगा । दिग्विजय सिंह की सभाओं में फायरब्रिगेड भेजना मुझे कुछ अजीबो गरीब सा लगा । या तो हमारे डॉं. साहब झूठ बोल रहे हैं सरासर झूठ या फिर यह सच है तो हैरत अंगेज है ।
क्या दिग्विजय सिंह उमा भारती की तरह फायर ब्राण्ड नेता हैं जो आग लगाते फिरते हैं, सो सरकार को उनके संग हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजनी पड़ती है ।
खैर भाजपाई सोच सकते हैं सोचो सोचो ...गालिब दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है । यूं सोचो कि दिग्विजय सिंह जहॉं जाते हैं वहीं आग लगा आते हैं, जिसे बुझाने के लिये भाजपाईयों को दिन रात एक करके हफ्तों तक पसीना बहा कर पानी छिड़कना पड़ता है । और राजा हैं कि मानते ही नहीं, छेड़ना, ऊंगली करना, आग लगाना, खिला खिला कर मारना ये सब दिग्विजय सिंह की बहुत पुरानी आदतें हैं । और तो और आदमी एक बार आग लगा कर भाग जाये तो भी बात बने मगर दिक्कत ये है कि राजा रोज आ धमकते हैं और हनुमान जी जैसी पूंछ पसार कर कभी यहॉं तो कभी वहॉं आग लगा देते हैं, कहॉं कहॉं बुझायें कैसे कैसे बुझायें वाकई टेंशन है । भाजपा के लिये दिग्यिजय सिंह आग लगाऊ मशीन बन गये हैं । जहॉं जाते हैं वहीं गड़बड़ कर देते हैं ।
लगता है भाजपा ने राजा का तोड़ खोज लिया है, इसलिये दिग्विजय सिंह की हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजना शुरू कर दी है । अब भईया किसी गॉंव शहर में कहीं आग लगे तो फायर ब्रिगेड के बजाय राजा दिग्विजय सिंह को फोन लगायें जिससे कम से कम फायर ब्रिगेड तो पहुँच जायेगी । मैं तो कहता हूँ कि फोन डायरेक्ट्री में फायर ब्रिगेड का नंबर बदल कर राजा साहब का नंबर छाप देना चाहिये । अब भईया मेरे तो राजा साहब से भी अच्छे ताल्लुक हैं, उनके साथ काम करने का मौका भी मिला है, कभी मौका मिला तो उन्हें चिट्ठी लिखकर अवगत करा दूंगा कि अपना नंबर फायर ब्रिगेड में छपवा दीजिये । वैसे तो इस आलेख को वे इण्टरनेट पर वे पढ़ ही लेंगें उनके साथ और भी कई हाईप्रोफाइल पढ़ कर उनका नंबर फायर ब्रिगेड में डलवा ही देंगें ।
सिर उठाने लगा राजस्थान का मीणा गूजर मुद्दा
राजस्थान के गूजर मीणा संग्राम से लगभग सभी भारतवासी अवगत ही हैं, मुरैना से कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत भी जाति से मीणा हैं । आज रावत ने अपनी मदद के लिये राजस्थान से नमो नारायण मीणा को बुलवाया हैं । उधर रावत के मीणा वाद से मुरैना के गूजर नेता भड़क गये हैं, गूजर वोटो पर अब तक आस टिकाये रामनिवास के लिये चम्बल के गूजर समुदाय से खतरे की घण्टी बजने लगी है । और रही सही गूजर वोट की आस भी जाती खिसकती नजर आने लगी है ।
गूजर पहले से ही कांग्रेस द्वारा मीणा (राम निवास रावत) को यहॉं टिकिट देने से खफा चल रहे थे अब खुल कर बोलने भी लगे हैं । हालांकि राजस्थान मुद्दे की बात गूजर केवल अपनी जाति समुदाय के बीच करते हैं लेकिन आम जनता में बड़ा अलग ही तर्क दे रहे हैं, उनका तर्क है कि – मुरैना सामान्य सीट है या आरक्षित, अगर आदिवासी (चम्बल के गूजर चम्बल के मीणाओं को आदिवासी कहते हैं) ही वोट देना है तो फिर इस सीट को समान्य कराने की जरूरत क्या थी ।
मैं गूजरों के ऐसे ओछे तर्कों से सहमत नहीं हूँ भई चम्बल में मीणा आदिवासी नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग में आते हैं, राजस्थान की बात राजस्थान तक ही रहने दीजिये, और रामनिवास को भी राजस्थान से जातिवादी नेता इम्पोर्ट नहीं करना चाहिये थे ।
भिण्ड विधायक हत्या काण्ड – गालिब दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
चुनाव चर्चा-2
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं प्रचार भी अपनी जवानी पर आता जा रहा है । जहॉं तक ग्वालियर चम्बल की बात है अंचल की चारों सीटों पर परिणाम तकरीबन साफ और परिदृश्य एकदम स्पष्ट दीवार पर लिखी इबारत के मानिन्द सुपाठ्य है ।
भिण्ड संसदीय सीट पर जहॉं कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. भागीरथ भारी भरकम विजय परचम फहराने जाते दीख रहे हैं तो वहीं बिल्कुल ऐसा ही मुरैना सीट पर विकट जातीय ध्रुवीकरण के चलते भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर भी ऐतिहासिक जीत (रिकार्ड मतों के साथ) अंकित करने जा रहे हैं । मेरे विश्लेषण और आकलन के मुताबिक इन दोनों ही सीटों पर चुनाव लगभग एक चक्षीय से हो गये हैं । मुरैना में हालांकि जातीय और सामाजिक माहौल भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर के एकदम खिलाफ था और अंचल के मतदाता तोमर से एकदम खफा थे लेकिन जातीय ध्रुवीकरण (जो कि होना ही था) और एकमात्र दलीय राजपूत प्रत्याशी होने का लाभ न केवल नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहा है अपितु मजबूरी में मिले वोट ( लोगों का कहना है क्या करें मजबूरी में वोट देना पड़ रहा है ) भी रिकार्ड होंगें तथा यह भी कि इसमें केवल राजपूत वोट ही नहीं बल्कि अन्य तकरीबन सभी जातियों के वोट भी नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहे हैं (सभी वोट मजबूरी के वोट हैं) ।
भिण्ड में भी ऐसे ही हालात हैं लेकिन एकदम उल्टे यानि यहॉं इस संसदीय सीट पर कॉंग्रेस की यही स्थिति है ( यहॉं मजबूरी का वोट नहीं बल्कि मनपसन्द प्रत्याशी के लिये वोट होगा) । गोहद विधायक स्व. माखन लाल जाटव की हत्या के बाद डॉ भागीरथ की जीत पुख्ता और पुष्ट हो गयी है, यह जीत तो हत्या से पहले ही लगभग एकदम सुनिश्चित थी । भिण्ड सीट पर भाजपा चुनाव प्रचार की शुरूआत से ही प्रभावहीन थी । ऊपर से माखन लाल जाटव की हत्या से भाजपा का चुनाव प्रचार एकदम कोमा में पहुँच गया है और भाजपाई डरते दुबकते चुनाव की बात करते हैं । बचे खुचे भाजपा कार्यकर्ता मुरैना और गुना पलायन कर गये हैं ।
अशोक अर्गल (भाजपा प्रत्याशी) को जो जिल्लत भिण्ड में उठानी पड़ रही है वह स्वाभाविक ही थी, चम्बल की इन दोनों सीटों पर जो भी हो रहा है उसमें किंचित भी कुछ भी विस्मयकारी नहीं है ।
गुना ग्वालियर में सीधे मुकाबले भाजपा और कांग्रेस के बीच हैं और ग्वालियर में मामूली (अधिक भी संभव है) अन्तराल पर कांग्रेस तथा गुना में लम्बे अन्तराल पर कांग्रेस का विजयी होना लगभग तय माना जा रहा है ।
मुरैना में सीधा मुकाबला भाजपा बसपा के बीच होगा , कांग्रेस और माकपा तीसरे व चौथे स्थान के लिये संघर्ष करेंगे । भिण्ड में त्रिकोणीय कहिये या एक पक्षीय कहिये कांग्रेस की विजय के साथ भाजपा और बसपा दूसरे व तीसरे स्थान के लिये संघर्ष करेंगीं । मुरैना में हालांकि भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को बड़ी आसानी से हराया जा सकता है लेकिन प्रतिद्वंदी प्रत्याशी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे । अव्वल तो नरेन्द्र सिंह तोमर के कमजोर पक्ष (वीक पाइण्टस) से वे पूरी तरह या तो अज्ञान या अनजान हैं या फिर उठा नहीं पा रहे या उठाना नहीं चाह रहे । अन्य प्रत्याशीयों की तुलना नरेन्द्र सिंह तोमर का नकारात्मक पक्ष अधिक स्पष्ट व प्रबल था लेकिन यह नरेन्द्र सिंह तोमर का भाग्य या मुकद्दर है कि उनकी टक्कर में कांग्रेस और बसपा ताकतवर प्रत्याशी न देकर कमजोर प्रत्याशीयों को लेकर आयीं जो कि चुनाव प्रचार की सामान्य और बारीक कैसी भी रणनीति और रीति नीति से सर्वथा नावाकिफ हैं ।
मुरैना 23 करोड़ और विदिशा 37 करोड़ में बिके
मुरैना में हालांकि यह अफवाह भी है कि कांग्रेस ने मुरैना और विदिशा सीट क्रमश: 23 करोड़ और 37 करोड़ रू. में भाजपा को बेची हैं । अब इस अफवाह में कितनी दम है या कितनी सच्चाई है यह तो भाजपाई जानें या कांग्रेसी बन्धु जानें ।
पार्टीयां बेअसर
भिण्ड और मुरैना तथा गुना और ग्वालियर चारों सीटों पर राजनीतिक पार्टीयां पूरी तरह बेअसर हो गयीं है इन सीटों पर प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि और जातीय ध्रुवीकरण एवं सामाजिक समीकरणों पर चुनाव आध्धरित हो गये हैं ।
माखनलाल हत्याकाण्ड- डेमेज कण्ट्रोल बेअसर
भाजपा और पुलिस द्वारा गोहद विधायक माखन लाल जाटव की हत्या से बनी स्थिति और हुये डेमेज के कण्ट्रोल के लिये खेले गये सर्कस और सीरीयल चुनावी अर्थों में बेअसर हो गये हैं । हत्याकाण्ड में कांग्रेसी नेताओं को लपेटना लोगों के गले नहीं उतर रहा जबकि हत्या की सुपारी के लिये पैसे कहॉं से आये किसने दिये, किसको दिये कब दिये कहॉं दिये जैसे सवाल अभी तक अधर में हैं, पैसे बरामद क्यों नहीं हुये, कई सवाल पुलिस की भूमिका और भाजपा नेताओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं । इसमें एक अहम सवाल यह भी है कि जो व्यक्ति 32 लाख रू. की सुपारी लेकर हत्या कर सकता है, क्या वही व्यक्ति ज्यादा रकम मिलने पर झूठा गुनाह नहीं कबूल कर सकता ( संभव है कि झूठा गुनाह कबूल करने के लिये भी पैसे मिले हों) अभी सवाल कई इस हत्याकाण्ड पर उठ रहे हैं और पुलिस की भूमिका दिनोंदिन संदिग्ध ही होती जा रही है ।
भिण्ड विधायक हत्या काण्ड – गालिब दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
चुनाव चर्चा-2
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं प्रचार भी अपनी जवानी पर आता जा रहा है । जहॉं तक ग्वालियर चम्बल की बात है अंचल की चारों सीटों पर परिणाम तकरीबन साफ और परिदृश्य एकदम स्पष्ट दीवार पर लिखी इबारत के मानिन्द सुपाठ्य है ।
भिण्ड संसदीय सीट पर जहॉं कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. भागीरथ भारी भरकम विजय परचम फहराने जाते दीख रहे हैं तो वहीं बिल्कुल ऐसा ही मुरैना सीट पर विकट जातीय ध्रुवीकरण के चलते भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर भी ऐतिहासिक जीत (रिकार्ड मतों के साथ) अंकित करने जा रहे हैं । मेरे विश्लेषण और आकलन के मुताबिक इन दोनों ही सीटों पर चुनाव लगभग एक चक्षीय से हो गये हैं । मुरैना में हालांकि जातीय और सामाजिक माहौल भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर के एकदम खिलाफ था और अंचल के मतदाता तोमर से एकदम खफा थे लेकिन जातीय ध्रुवीकरण (जो कि होना ही था) और एकमात्र दलीय राजपूत प्रत्याशी होने का लाभ न केवल नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहा है अपितु मजबूरी में मिले वोट ( लोगों का कहना है क्या करें मजबूरी में वोट देना पड़ रहा है ) भी रिकार्ड होंगें तथा यह भी कि इसमें केवल राजपूत वोट ही नहीं बल्कि अन्य तकरीबन सभी जातियों के वोट भी नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहे हैं (सभी वोट मजबूरी के वोट हैं) ।
भिण्ड में भी ऐसे ही हालात हैं लेकिन एकदम उल्टे यानि यहॉं इस संसदीय सीट पर कॉंग्रेस की यही स्थिति है ( यहॉं मजबूरी का वोट नहीं बल्कि मनपसन्द प्रत्याशी के लिये वोट होगा) । गोहद विधायक स्व. माखन लाल जाटव की हत्या के बाद डॉ भागीरथ की जीत पुख्ता और पुष्ट हो गयी है, यह जीत तो हत्या से पहले ही लगभग एकदम सुनिश्चित थी । भिण्ड सीट पर भाजपा चुनाव प्रचार की शुरूआत से ही प्रभावहीन थी । ऊपर से माखन लाल जाटव की हत्या से भाजपा का चुनाव प्रचार एकदम कोमा में पहुँच गया है और भाजपाई डरते दुबकते चुनाव की बात करते हैं । बचे खुचे भाजपा कार्यकर्ता मुरैना और गुना पलायन कर गये हैं ।
अशोक अर्गल (भाजपा प्रत्याशी) को जो जिल्लत भिण्ड में उठानी पड़ रही है वह स्वाभाविक ही थी, चम्बल की इन दोनों सीटों पर जो भी हो रहा है उसमें किंचित भी कुछ भी विस्मयकारी नहीं है ।
गुना ग्वालियर में सीधे मुकाबले भाजपा और कांग्रेस के बीच हैं और ग्वालियर में मामूली (अधिक भी संभव है) अन्तराल पर कांग्रेस तथा गुना में लम्बे अन्तराल पर कांग्रेस का विजयी होना लगभग तय माना जा रहा है ।
मुरैना में सीधा मुकाबला भाजपा बसपा के बीच होगा , कांग्रेस और माकपा तीसरे व चौथे स्थान के लिये संघर्ष करेंगे । भिण्ड में त्रिकोणीय कहिये या एक पक्षीय कहिये कांग्रेस की विजय के साथ भाजपा और बसपा दूसरे व तीसरे स्थान के लिये संघर्ष करेंगीं । मुरैना में हालांकि भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को बड़ी आसानी से हराया जा सकता है लेकिन प्रतिद्वंदी प्रत्याशी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे । अव्वल तो नरेन्द्र सिंह तोमर के कमजोर पक्ष (वीक पाइण्टस) से वे पूरी तरह या तो अज्ञान या अनजान हैं या फिर उठा नहीं पा रहे या उठाना नहीं चाह रहे । अन्य प्रत्याशीयों की तुलना नरेन्द्र सिंह तोमर का नकारात्मक पक्ष अधिक स्पष्ट व प्रबल था लेकिन यह नरेन्द्र सिंह तोमर का भाग्य या मुकद्दर है कि उनकी टक्कर में कांग्रेस और बसपा ताकतवर प्रत्याशी न देकर कमजोर प्रत्याशीयों को लेकर आयीं जो कि चुनाव प्रचार की सामान्य और बारीक कैसी भी रणनीति और रीति नीति से सर्वथा नावाकिफ हैं ।
मुरैना 23 करोड़ और विदिशा 37 करोड़ में बिके
मुरैना में हालांकि यह अफवाह भी है कि कांग्रेस ने मुरैना और विदिशा सीट क्रमश: 23 करोड़ और 37 करोड़ रू. में भाजपा को बेची हैं । अब इस अफवाह में कितनी दम है या कितनी सच्चाई है यह तो भाजपाई जानें या कांग्रेसी बन्धु जानें ।
पार्टीयां बेअसर
भिण्ड और मुरैना तथा गुना और ग्वालियर चारों सीटों पर राजनीतिक पार्टीयां पूरी तरह बेअसर हो गयीं है इन सीटों पर प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि और जातीय ध्रुवीकरण एवं सामाजिक समीकरणों पर चुनाव आध्धरित हो गये हैं ।
माखनलाल हत्याकाण्ड- डेमेज कण्ट्रोल बेअसर
भाजपा और पुलिस द्वारा गोहद विधायक माखन लाल जाटव की हत्या से बनी स्थिति और हुये डेमेज के कण्ट्रोल के लिये खेले गये सर्कस और सीरीयल चुनावी अर्थों में बेअसर हो गये हैं । हत्याकाण्ड में कांग्रेसी नेताओं को लपेटना लोगों के गले नहीं उतर रहा जबकि हत्या की सुपारी के लिये पैसे कहॉं से आये किसने दिये, किसको दिये कब दिये कहॉं दिये जैसे सवाल अभी तक अधर में हैं, पैसे बरामद क्यों नहीं हुये, कई सवाल पुलिस की भूमिका और भाजपा नेताओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं । इसमें एक अहम सवाल यह भी है कि जो व्यक्ति 32 लाख रू. की सुपारी लेकर हत्या कर सकता है, क्या वही व्यक्ति ज्यादा रकम मिलने पर झूठा गुनाह नहीं कबूल कर सकता ( संभव है कि झूठा गुनाह कबूल करने के लिये भी पैसे मिले हों) अभी सवाल कई इस हत्याकाण्ड पर उठ रहे हैं और पुलिस की भूमिका दिनोंदिन संदिग्ध ही होती जा रही है ।